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तीन माह से वेतन भुगतान नहीं होने के कारण शिक्षक भुखमरी के कगार पर – केशव

सत्येन्द्र कुमार शर्मा,सारण:बिहार सरकार एवं शिक्षा विभाग द्वारा नित नये-नये आदेश निर्गत कर शिक्षा के स्तर को सुधारने में लगी हुई है वहीं शिक्षकों के हीत को नजरंदाज कर शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक शोषण कर रही है।

पिछले 20 वर्षों से शिक्षा के क्षेत्र में योगदान देने वाले नियोजित शिक्षकों को कभी समय से वेतन भुगतान नहीं किया गया है जिसके कारण शिक्षकों में अपने बच्चों की पढ़ाई, उपचार ,बैंक लोन की किस्त चुकाने एवं दिनचर्या के रूटिन में होने वाले खर्च को लेकर काफी तनाव बना रहता है।
छपरा, बक्सर, शिवहर आदि जिले जो जीओबी से वेतन पाते हैं उन शिक्षकों का माह सितम्बर से ही बकाया है जिसके कारण दुर्गापूजा, दीपावली, छठ महापर्व, भैयादूज के साथ शादी-विवाह का मुहूर्त में शिक्षकों को कर्ज या बैंक लोन या दुसरे पर आश्रित होना मजबुरी बन गया है तथा नियोजित शिक्षकों में भुखमरी की स्थिति बन गई है।
समाज के नजरों में शिक्षक का वेतन पुराने शिक्षकों की भांति है जिस कारण कोई जल्दी मदद भी नहीं करना चाहतें इस स्थिति में शिक्षक यह सोचने पर मजबूर हैं कि अपना वेतन सरकार के पास और हम कर्ज लेकर काम चलाएं।
सरकार की कथनी और करनी में काफी अंतर है जिससे शिक्षक अपने को ठगा महसूस करते हैं।
शिक्षकों का मूलभूत सुविधाएं जिसमें कई वर्षों से जिलों से बाहर नियोजित शिक्षकों का स्थानांतरण, सनातन ग्रेड में प्रमोशन आदि मुद्दों को लटकाकर रखी हुई है।
केंद से मिलने वाली राशि से तो शिक्षकों का भुगतान हो जा रहा है लेकिन राज्य सरकार से वेतन पाने वाले शिक्षकों का बुरा हाल है।
बिहार सरकार एवं शिक्षा विभाग की मनमानी अपने चरम पर है। शिक्षकों को अपने वाजीब हक को कहने एवं लिखने का भी अधिकार छीन लिया गया है। शिक्षक संघ-संगठन को आम जनता के बीच फर्जी साबित किया जा रहा है जिसको लेकर हम सभी शिक्षक सड़क,सदन एवं कोर्ट में भी चैलेंज करने से पिछे नहीं हटेंगे।
2024 अवकाश तालिका में दर्ज 60 दिनों के अवकाश में सिर्फ 19 दिन ही शिक्षक वास्तविक छुट्टी का लाभ ले सकेंगे बाकी विद्यालय में उपस्थित रहते हुए कार्य करना है।
अपनी वाजिब मांग एवं समस्याओं को शोशल मिडिया या प्रिंट मिडिया के माध्यम से रखने पर 24 घंटे के अंदर विभाग द्वारा स्पष्टीकरण मांगा जाता है जबकि चार माह से वेतन नहीं देने वाले अधिकारियों को विभाग द्वारा प्रमोशन दिया जाता है जो बिहार सरकार की नाकामी एवं नियोजित शिक्षकों को जानबुझकर परेशान करने की प्रवृत्ति बन गई है।

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