शुद्धता का नाम है रमजान इसमें बुरा न देखें, न बुरा सुनें और न ही बुरा बोलें।
सोनपुर- इस्लाम धर्म का सबसे पाक महीना रमजान-ए-पाक महीना शुक्रवार से शुरू हो गया है। रमजान के महीने की शुरुआत चांद देखने के बाद होती है जो गुरुवार को देखा गया है। मुस्लिम समुदाय के लोग साल भर रमजान का बेसब्री से इंतजार करते हैं, क्योंकि ऐसी मान्यताएं हैं कि इस महीने अल्लाह अपने बंदों को बेशुमार रहमतों से नवाजते है और दोजख (जहान्नम) के दरवाजे बंद कर के जन्नत (स्वर्ग) के दरवाजे खोल देते है और अल्लाह भूखे-प्यासे रहकर खुदा की इबादत करने वालों के गुनाह को माफ करते हैं । मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए रमजान का महीना का महत्व इसलिए भी है क्योंकि 29 से 30 दिनों तक चलने वाले रमजान महीने में रोजे रखने का उद्देश्य पैगंबर हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को याद करना है। कहते हैं कि इस माह में जन्नत के दरवाजे खुल जाते है।
इसी रमजान के महीने में 21वें रोजे को ही पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के द्वारा अल्लाह ने ‘कुरान शरीफ’ को अस्तित्व में लाया था। जिससे लोगों को इल्म और तहजीब की रोशनी मिली। खुद को खुदा की राह में समर्पित कर देने का प्रतीक पाक महीना ‘माह-ए-रमजान’ न सिर्फ रहमतों और बरकतों की बारिश नवाजता है बल्कि समूची मानव जाति को प्रेम, भाईचारे और इंसानियत का संदेश देते हुए इस्लाम के सार-तत्व को भी जाहिर करता है । रमजान के महीने में अल्लाह अपने बंदों की हर जायज दुआ को कुबूल करता है और उनको गुनाहों से बरी करता है। रोजा रखने के लिए चारित्रिक शुद्धता जरूरी रहती है। इस महीने में सक्षम लोग अनिवार्य रूप से अपनी कुल संपत्ति का एक निश्चित हिस्सा निकालकर उसे ‘जकात’ के तौर पर गरीबों में बांटते हैं। रोजा रखने के दौरान रोजेदार को खाने के बारे में नहीं सोचना चाहिए और पूरे दिन अपने मन को साफ पाक रखना चाहिए।सूरज निकलने से पहले सेहरी करना चाहिए है।
सूरज के ढलने के बाद इफ्तार करना चाहिए । रोजा खोलने से पहले खुदा की इबादत की जाता है। रोजा रखने वाले व्यक्ति को अपना रोजा खजूर खाकर तोड़ना होता है और फिर दूसरी चीजें खा सकते हैं। रोजा रखने वाले को इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि इस समय दांत में फंसा हुआ खाना जानबूझकर न निगले नहीं तो उसका रोजा टूट जाएगा। रोजे का मतलब बस भूखे प्यार रहने ही नहीं है बल्कि आंख, कान और जीभ का भी रोजा रखा जाता है। मतलब न ही इस दौरान कुछ बुरा देखें, न बुरा सुनें और न ही बुरा बोलें।