न्यूज4बिहार/सोनपुर-हर साल यह त्योहार भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरितालिका तीज व्रत मनाया जाता है । यह व्रत खासकर सुहागिन महिलाओं के लिए है । इस दिन सुहागिन महिलाएं अखंड सौभाग्य और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए यह व्रत रखती हैं। यह करवा चौथ व्रत से भी कठिन होता है, क्योंकि इस दिन महिलाएं निर्जला उपवास रहकर तीज व्रत करती हैं। अखंड सौभाग्य के पर्व तीज को लेकर महिलाओं में काफी उत्साह देखी गयी क्योंकि दो वर्ष बाद व्रती सामूहिक रूप से पर्व में हिस्सा ली । सुबह से ही महिलाएं घर का कामकाज निबटा कर महिलाएं तीज व्रत को प्रसाद बनाने में जुट गयीं ।धीरे-धीरे गुजिया और ठेकुआ की भीनी-भीनी खुशबू फैल गयी । प्रसाद बनाने के बाद महिलाएं पूजन समाग्री व ऋतु फल को एकत्रित कर फिर सोलहों सृंगार कर डालियां में सभी ऋतु फल ,गुज़िया व ठेकुआ ,सिन्दूर, टिकुली,अलता,लहठी सहित अन्य सृंगार रखकर विधि विधान के साथ पुरोहितों द्वारा वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ सभी सुहागिन व कुँवारी कन्याओं ने भगवान शिव व माता पार्वती के साथ नौग्रहो को पूजा करते हुए तीज व्रत के कथा को बड़ी ही शान्त भाव से सुनते हुए भगवान शिव व माता पार्वती से अपने पति के दीर्घायु व निर्मल काया के साथ घर मे सुख शांति बनाए रखने के लिए उनसे आराधना की और मन्नतें माँगी। अहले सुबह पुरोहितों द्वारा मंत्रोचारण के साथ मट्टी के बने गौड़ गणेश व भगवान शिव व माता पार्वती को विधि विधान के साथ विसर्जन करने के उपरांत व्रतधारी द्वारा हरितालिका तीज व्रत को संपन करती है ।
हरतालिका तीज व्रत कथा-
पौराणिक व्रत कथा के अनुसार, जब पिता के यज्ञ में अपने पति शिव का अपमान देवी सती सह न सकीं । उन्होंने खुद को यज्ञ की अग्नि में भस्म कर दिया ।अगले जन्म में उन्होंने हिमनरेश के यहां जन्म लिया और पूर्व जन्म की स्मृति शेष रहने के कारण इस जन्म में भी उन्होंने भगवान शंकर को ही पति के रूप में प्राप्त करने के लिए तपस्या की।
देवी पार्वती ने तो मन ही मन भगवान शिव को अपना पति मान लिया था और वह सदैव भगवान शिव की तपस्या में लीन रहतीं। पुत्री की यह हालत देखकर राजा हिमाचल को चिंता होने लगी। इस संबंध में उन्होंने नारदजी से चर्चा की तो उनके कहने पर उन्होंने अपनी पुत्री उमा का विवाह भगवान विष्णु से कराने का निश्चय किया। पार्वतीजी विष्णुजी से विवाह नहीं करना चाहती थीं । पार्वतीजी के मन की बात जानकर उनकी सखियां उन्हें लेकर घने जंगल में चली गईं। इस तरह सखियों द्वारा उनका हरण कर लेने की वजह से इस व्रत का नाम हरतालिका व्रत पड़ा। पार्वतीजी तब तक शिवजी की तपस्या करती रहीं जब तक उन्हें भगवान शिव पति के रूप में प्राप्त नहीं हुए । भगवान शिव प्रसन्न होकर माता पार्वती को अपना पत्नी के रूप में स्वीकार करते हुए विधि विधान के साथ भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह किए तभी से पार्वतीजी के प्रति सच्ची श्रद्धा के साथ यह व्रत सुहागिन महिलाएं हरितालिका तीज व्रत करने की परंपरा चली आ रही है ।