मैथिली भाषा की उपेक्षा अब नही सहेंगे मिथिलावासी- गोपाल चौधरी।

न्यूज4बिहार/दरभंगा: मिथिला स्टूडेंट यूनियन के निवर्तमान महासचिव गोपाल चौधरी ने कहा कि हाल ही में मंत्रिमंडल का यह निर्णय है कि सभी लोकभाषाओं की एक ही अकादमी होगी। उसमें हिंदी उर्दू की गिनती नहीं है। क्योंकि वो पहले से राजभाषा रुप मे घोषित है।मैथिली संविधान की अष्टम अनुसूची की भाषा है एवं भारत सरकार की बाईस आधिकारिक भाषाओं मे से एक भाषा है। तो फिर किस आधार पर मैथिली को क्षेत्रीय लोकभाषा के लिस्ट मे रखा गया है? जो संवैधानिक भाषा जिस राज्य की भाषा है नियमानुसार वो भाषा उस राज्य की ऑफिसियल लेंग्वेज होनी चाहिए। इस अनुसार मैथिली बिहार राज्य की एक बड़े भूभाग मे बोली जानेवाली भाषा है और यह बिहार राज्य की ऑफिसियल भाषा होने की सारी योग्यता रखती है। लेकिन दुख के साथ कहना पर रहा है कि जिस भाषा की साहित्य इतनी प्राचीन और समृद्ध हो उस भाषा की अकादमी को बिहार सरकार द्वारा सुनियोजित तरीके से खत्म किया जा रहा है। मैथिली की प्राचीन साहित्य सातवीं सदी से उपलब्ध है। उत्तर और पुर्वी भारत की सभी आर्य भाषाओ में पहली गद्य रचना “वर्ण रत्नाकर” ज्योतिरीश्वर ठाकुर द्वारा मैथिली मे हुई थी। इस भाषा की साहित्य का विपुल भंडार बिद्यापति, चंदा झा, हरिमोहन झा एवं यात्री जैसे अनेक रचनाकारो ने अपनी रचना से भरा है। लेकिन दुखद ये है कि बिहार राज्य मे एक संवैधानिक और प्राचीन भाषा को ना विद्यालयों मे मातृभाषा के माध्यम से पढ़ाया जाता है ना इसके साहित्य के बिकास के लिए कोइ ठोस कदम उठाया जाता है। Msu अब चरणबद्घ तरीके से मैथिली भाषा के सम्मान के लिए आम मैथिलों के सहयोग से विभिन्न स्तरों पर आंदोलन करेगी । इस मौके पर संगठन के पूर्व बिहार प्रभारी शिवेंद्र वत्स, बिरौल प्रखण्ड अध्यक्ष नवीन सहनी, गौरा बौराम प्रखंड अध्यक्ष नारायण क्रांतिकारी, कार्यालय प्रभारी मुरारी मिश्रा, अंकित आजाद, सहित दर्जनों कार्यकर्ता उपस्थित हुए ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *