सारण के विकास की सुध लेना पूरी तरह भूल चुकी हैं एनडीए सरकार : शैलेंद्र प्रताप सिंह

News4Bihar: सारण विकास मंच के संयोजक शैलेंद्र प्रताप सिंह ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के मढ़ौरा दौरे के बाद उन पर तीखा हमला बोला है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री मढ़ौरा आए लेकिन मढ़ौरा शुगर मिल को लेकर एक शब्द भी नहीं बोले। जबकि दशकों से यहां की जनता इस मिल के दुबारा शुरू होने की उम्मीद लगाए बैठी है। उन्होंने कहा कि मढ़ौरा शुगर मिल बंद होने से हजारों परिवारों की आजीविका छिन गई और तब से लोग लगातार इसके पुनरुद्धार की मांग कर रहे हैं, लेकिन हर सरकार ने इसे नज़रअंदाज़ किया है। तरैया विधानसभा क्षेत्र समेत पूरे सारण के लोगों का इससे जुड़ाव रहा है और यह अर्थव्यवस्था की रीढ़ रही है। लेकिन सरकार की खराब नीतियों ने सबकुछ बरबाद कर दिया है।

उन्होंने कहा कि बिहार और केंद्र सरकार दोनों ने मढ़ौरा के साथ सारण को पूरी तरह भुला दिया है। पीएम नरेंद्र मोदी ने भी दशक भर पहले कहा था कि यहां शुगर मिल फिर शुरू होगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। यही नहीं यहां की जमीनों को भी दूसरे कार्यों में इस्तेमाल की कोशिश शुरू हो गई है। इससे तरैया विधानसभा क्षेत्र समेत पूरे सारण में निराशा है।

शैलेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि इसी तरह मढ़ौरा का रेल इंजन कारखाना लालू प्रसाद यादव की सोच का परिणाम है, लेकिन एनडीए सरकार ने इससे जुड़ी स्थानीय जनता की आकांक्षाओं को भी दफन कर दिया। जमीन अधिग्रहण के समय किसानों से वादा किया गया था कि उनके परिवारों को सरकारी नौकरी दी जाएगी, परंतु वह वादा अब तक अधूरा है। इससे तरैया विधानसभा क्षेत्र समेत पूरे सारण के सैकड़ों लोगों को सीधा नुकसान पहुंचा है।

उन्होंने कहा कि फैक्ट्री में स्थानीय युवाओं को रोजगार देने की बात कही गई थी, लेकिन हकीकत यह है कि यहां बाहर के लोग काम कर रहे हैं और सारण के पढ़े-लिखे नौजवान बेरोजगारी झेल रहे हैं। साथ ही, सीएसआर के तहत मिलने वाला फंड भी स्थानीय विकास पर खर्च नहीं होता, बल्कि उसका बंदरबांट कर दिया जाता है।

सारण विकास मंच ने कहा कि मढ़ौरा शुगर मिल का बंद रहना इस इलाके की सबसे बड़ी आर्थिक त्रासदी है। जब मिल चालू थी तो तरैया विधानसभा क्षेत्र के हजारों लोगों को रोजगार मिलता था, आसपास के किसान गन्ना बेचकर खुशहाल रहते थे और मढ़ौरा की पहचान पूरे प्रदेश में थी। लेकिन अब हालत यह है कि जमीन और प्रदूषण का बोझ तो मढ़ौरा के लोग झेल रहे हैं, पर यहां न उद्योग है और न रोजगार। फैक्ट्री के नाम में भी मढ़ौरा या सारण की पहचान तक नहीं जोड़ी गई।

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