आरोग्य दिवस पर टीकाकरण कराने आयी महिलाओं को मिली फाइलेरिया से बचाव की जानकारी

• जैसे बच्चों के जीवन के लिए टीका जरूरी वैसे ही, फाइलेरिया से बचाव के लिए दवा खाना जरूरी

• फाइलेरिया पेशेंट सपोर्ट नेटवर्क सदस्यों ने किया महिलाओं को किया जागरूक
• गांव और समाज को फाइलेरिया मुक्त बनाना है
छपरा। जिले में फाइलेरिया उन्मूलन के लिए सामुदायिक स्तर पर अभियान चलाया जा रहा है। फाइलेरिया से बचाव के लिए आईडीए दवा सेवन कार्यक्रम अभियान चलाया जाना है। इसके सफल क्रियान्वयन को लेकर सामुदायिक सहभागिता सुनिश्चित की जा रही है। जिले में फाइलेरिया पेशेंट नेटवर्क सदस्यों के जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। इसी कड़ी में जिले के सोनपुर प्रखंड के शेखडुमरी गांव आंगनबाड़ी केंद्र पर आयोजित आरोग्य दिवस पर टीकाकरण के लिए आने वाली महिलाओं को नेटवर्क सदस्यों के द्वारा फाइलेरिया से बचाव तथा दवा सेवन के प्रति जागरूक किया गया। कचहरी सपोर्ट ग्रुप के नेटवर्क मेम्बर कृष्ण चौधरी और राजीव कुमार द्वारा आईडीए की दवा सेवन करने के लिए अपील की गई, ताकि जो तकलीफ हमलोग गुजर रहे हैं ये तकलीफ हमारे आने वाले पीढ़ी को या किसी अन्य व्यक्ति को ना हो। इस दवा सेवन कार्यक्रम से हम सभी अपने गाँव समाज को फाईलेरिया मुक्त बना सकते हैं। कार्यक्रम के दौरान आशा मंजू देवी, एएनएम सुनीता कुमारी, सेविका पूनम कुमारी तथा गांव की 13 मिहिला मौजूद रही। महिलाओं ने बताया कि जैसे बच्चों को टीका लेना जरूरी हैं वैसे ही हम सभी को फाइलेरिया से बचने के लिए आईडीए की दवा खाना जरूरी हैं।

मानसिक स्थिति पर भी पड़ता है बुरा प्रभाव :

जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ. दिलीप कुमार सिंह ने बताया कि फाइलेरिया बीमारी से संबंधित स्पष्ट कोई लक्षण नहीं होता है। बुखार, बदन में खुजली और पुरुषों के जननांग और उसके आस-पास दर्द व सूजन की समस्याएं हो जाती है। इसके अलावा पैरों और हाथों में सूजन, हाइड्रोसील (अंडकोष में सूजन) और भी कई अन्य तरह से फाइलेरिया के लक्षण देखने व सुनने को मिलते हैं। इस बीमारी में सबसे पहले हाथ और पांव दोनों में हाथी के पांव जैसी सूजन आ जाती है। कई सालों तक इसके लक्षण नजर नहीं आते हैं। फाइलेरिया न सिर्फ व्यक्ति को विकलांग बना देती है बल्कि इससे मरीज की मानसिक स्थिति पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।

बढ़ जाती है शारीरिक अपंगता:

भीबीडीसी सुधीर कुमार ने बताया कि बीमारी बढ़ने के साथ-साथ शारीरिक अपंगता बढ़ती चली जाती है। इसी कारण इसे निग्लेक्टेड ट्रापिकल डिजीज की श्रेणी में शामिल किया गया है। दिव्यांगता बढ़ने के साथ ही उक्त व्यक्ति कामकाज में पूरी तरह से अक्षम हो जाता है। नौकरी पेशा या व्यवसाय से जुड़े व्यक्ति के अपंग होने की स्थिति में परिवार पर इसका बुरा असर पड़ता है। लगातार पांच वर्षो तक वर्ष में एक बार दवा का सेवन करने मात्र से बीमार व्यक्ति इस बीमारी से सुरक्षित रह सकता है। दवा खा चुके व्यक्तियों में अगर फाइलेरिया के माइक्रो फाइलेटी होते हैं तो वह निष्क्रिय हो जाता हैं। किसी अन्य के संक्रमित होने की आशंका नहीं रह जाती है।

फाइलेरिया से बचाव को लेकर सतर्कता जरूरी
• अपने घर के आसपास व अंदर सफाई का ख्याल रखें
• मच्छर के काटने से फैलता है फाइलेरिया, इसलिए आसपास कहीं भी पानी का जमाव नहीं होने दें
• समय-समय पर कीटनाशक का छिड़काव करते रहना चाहिए
• सोते समय हाथ और पैर सहित अन्य खुले भाग पर सरसों या नीम का तेल लगाएं
• हाथ या पैर में कहीं चोट लगी हो या घाव हो तो उसकी नियमित रूप से करें सफाई

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