मोतिहारी से संतोष राउत की रिपोर्ट।
न्यूज4बिहार/मोतिहारी :पताही प्रखंड मुख्यालय से 15 किलोमीटर उत्तर और पूरब दिशा में शिवहर सीतामढ़ी सीमा से सटे लालवाक्या बागमती नदी के किनारे बसा देवापुर पंचायत किसी पहचान की मोहताज नहीं क्योंकि यहां के किसान अपनी मेहनत के बदौलत अपनी तकदीर लिखते है. कभी अतिवृष्टि तो कभी सूखे की मार, कभी खाद – बीज का संकट तो कोई अन्य प्राकृतिक आपदा, लिहाजा हर समय फसल की पैदावार को लेकर रोना रोने वाले किसानों के बीच जब, देवापुर पंचायत के किसानों ने केले की खेती को आधार बनाया तो आज न सिर्फ वह पंरपरागत धान-गेहूं जैसी फसल के सापेक्ष कई गुना अधिक लाभ पा रहे हैं तो दूसरे किसानों को भी स्वावंबन की राह दिखाने का काम कर रहे हैं।उनका मानना है कि शासन स्तर से प्रोत्साहन मिले और किसान जरा सा रूचि दिखाए तो अन्य फसल भी मात खाने लगेगा।गांव के ग्रामीण किसानों ने बताया कि पहले वह भी धान, गेहूं से लेकर परंपरागत मक्का, मटर मसूरी खेसारी आदि की खेती किया करते थे। कभी पानी न होने तो कभी किसी अन्य कारण से फसल से उचित उत्पादन नहीं मिल पाता था। बताया कि इसके पश्चात जब उन्होंने केले की खेती शुरू की तो शुरुआती दौर में थोड़ी दिक्कत हुई ¨कतु उसके बाद लाभ मिलना शुरू हो गया। बताया कि सबसे अहम तो यह है कि एक बार केले की खेती करने के बाद खेत की उर्वरा शक्ति भी बढ़ जाती है। इससे कोई दूसरी फसल बोने पर उसकी भी पैदावार में बढ़ोत्तरी हो जाती है। बताया कि एक बीघा केले की खेती में अनुमानित 20 हजार रुपये की लागत आती है। आठ माह में यानी मई में रोपाई (बोआई) होती है तथा नवंबर दिसंबर में कटाई एक बीघा खेत रोपे जाने वाले तकरीबन 14 सौ केले के पेड़ होते हैं एक लाख 20 हजार से लेकर डेढ़ लाख रुपये तक की उपज हासिल हो जाती है।
केले की खेती कर रहे किसान ने बताया कि इस बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में कई अन्य लोग भी केला उपजाते हैं लेकिन शासन स्तर से आज तक कोई प्रोत्साहन नहीं मिला। इससे लोग परंपरागत खेती को ही अधिक तरजीह देते हैं। विशेषकर शासन स्तर से नीलगाय एवं जंगली सूअरों से बचाव की व्यवस्था के साथ उत्पादित केले की बिक्री के लिए बाजार उपलब्ध करा दिया जाय तो भी किसानों को राहत मिल जाएगी। यहां के किसान अपनी मेहनत की बदौलत अन्य फसलों को भी मात दे देंगे।