News4Bihar: सूर्योपासना का महापर्व छठ 5 नवम्बर मंगलवार को नहाय-खाय के साथ शुरू हो जाएगा।नहाय-खाय विधि में व्रती स्नान के बाद कद्दू की सब्जी,अरवा चावल और चना की दाल शाकाहारी भोजन ग्रहण करती है। जबकि 6 नवम्बर को खरना का विधान पूर्ण किया जाएगा। जिसमें गुड़ चावल की खीर,रोटी का प्रसाद बनाया जाता है जो मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी से आग जलाकर बनाया जाता है। डूबते सूर्य को 7 नवम्बर की शाम पहली अर्घ्य दी जाएगी जबकि उदितमान सूर्य को 8 नवम्बर की सुबह अर्घ्यदान होगा। इसके बाद विधि-विधान पूर्वक पूजन का समापन होगा और व्रती पारण करेंगी। आचार्य वाचस्पति तिवारी ने बताया कि नहाय-खाय व खरना के साथ ही सूर्य पूजन व अर्घ्य देने की शुभ तिथि अर्थात षष्ठी तिथि से दो दिन पहले यानि चतुर्थी से नहाय-खाय के साथ आरंभ हो जाता है और इसका समापन सप्तमी तिथि को पारण करके किया जाता है। इस पर्व में मुख्यत सूर्य देव को अर्घ्य देने का सबसे ज्यादा महत्व माना गया है। छठ का पर्व कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर नहाय-खाय से शुरू हो कर पंचमी को खरना, षष्ठी को डूबते सूर्य को अर्घ्य और सप्तमी को उगते सूर्य को जल अर्पित कर व्रत संपन्न किया जाता है। इस दिन टोकरी,दउरा में फलों, ईख,ठेकुआ, चावल के लड्डू यानी लड़ुआ आदि अर्घ्य के सूप में सजाया जाता है। इसके बाद नदी या तालाब में पानी में रहकर अर्घ्य देने का अनुष्ठान पूर्ण करते हैं। उन्होंने कहा कि चार दिन चलने वाले इस पर्व में सूर्य और छठी मैया की पूजा की जाती है। 36 घंटों तक कठिन नियमों का पालन करते हुए रखा जाने वाला यह महापर्व शुभ मुहूर्त में सम्पन्न करने पर व्रतियों को अत्यंत शुभदायी लाभ प्राप्त होता है जबकि उनके परिजनों का भी सकल कल्याण होता है। निष्ठापूर्ण अनुष्ठान सम्पन्न करने से हर मनोकामना सिद्ध होती है।