छपरा : अंतरराष्ट्रीय बेज्जति का कारण बना चोर, पुलिस की नहीं मिली अभी तक कामयाबी
जानिए कौन है विक्टर जिको
एडवेंचर और कलात्मक फोटोग्राफी का ऐसा जुनून जिसने युवक को हंगरी से भारत के दार्जिलिंग तक का सफर तय करने को मजबूर कर दिया. पर्वतारोही का शौक़ीन व बुडापोस्ट युनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी एंड इकोनॉमिक्स से इंजीनियरिंग का छात्र विक्टर जिचो करीब 63 हजार किमी की दुरी तय कर भारत पहुंचा युवक कोरोना जैसे वायरस के कारण लगे लॉक डाउन मे बुरी तरह फंस गया. जहां उसे अपनी जरूरत के सभी कीमती समानो को चोरी हो जाने की घटना ने अंदर से झकझोर दिया है.
विक्टर जिचो की माने तो एडवेंचर व फोटोग्राफी के साथ साथ विश्व के कई पर्वत श्रृंखलाओं पर शोध करना उनका लक्ष्य है. उनका मानना है कि वह हर कठिनाई भरे रास्ते की यात्रा उनकी फोटोग्राफी और निरंतर यात्रा करना जीवन का हिस्सा बन गया है. ये उन सभी उंची श्रृंखला वाली खूबसूरत पहाड़ों और पर्वतो पर चहलकदमी करना चाहते है इसके लिए सदैव प्रयासरत भी रहते है. इनका मानना है कि विश्वविद्यालय के उर्जा क्षेत्र में इंजीनियरिंग छात्र के रूप में विश्वविद्यालय परिसर मे कई आयोजन कराया. वही बिना यात्रा किये एक भी सेमेस्टर की कल्पना हम नही कर सकते. वे बताते है कि हर चेहरे के पिछे एक कहानी निहित है. प्रोट्रेट फोटोग्राफी दुनिया के समक्ष उस छिपे चेहरे के रहस्य को दिखाने का एक शानदार तरीका है जो वास्तव में कलात्मक है और इसे गुप्त न रखकर दिखाया जाना चाहिए.
भारत पहुंचते ही घटी घटना ने घर कर लिया.
एक तरफ कोरोना वायरस पुरे विश्व को झकझोर दिया है जो जहां है वही सुरक्षा की गुहार लगा रहा है. इन सबसे इतर हंगरी का पर्वतारोही विक्टर जिचो नें हंगरी से भारत के दार्जिलिंग साइकिल से ही यात्रा करने का ठान लिया. 8 फरवरी को भारत में प्रवेश किया वही 22मार्च को उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर मे पुलिसकर्मीयों द्वारा रोका गया क्योकि भारत में इसी दिन लॉकडाउन की शुरआत हुई. वहां मौजूद चिकित्सकों नें इनकी जांचोपरांत संक्रमण मुक्त बताया. जबकि सरकार के निर्देशानुसार जो भी विदेश से आये हुए नागरिक या यात्री है उन्हे सेल्फ क्वारेन्टाइन होना होगा या सरकार द्वारा बनाये गए क्वारेन्टाइन सेन्टर मे रहना होगा. वही बिहार के सारण जिले मे पहुंचने के बाद इन सभी तथ्यो से अलग वर्ताव इस विदेशी नागरिक के साथ हुआ जो भारत सरकार की सभी व्यवस्थाओं की किरकिरी करा रहा है. संक्रमण मुक्त होते हुए भी विदेशी युवक को सदर अस्पताल के आइसोलेशन वार्ड मे रखा गया जहां की कुव्यवस्था अब जिले ही नही देश के बाहर विदेशो मे चर्चा का विषय बन गया है. कुछ दिनों पहले सोशल मीडिया मे आइसोलेशन वार्ड में आवश्यकता जताते हुए कुर्सी व अन्य जरूरतमंद सामानों के सहायतार्थ पोस्ट डाली थी.
हद हो अब गई है जब सीसीटीवी से लैस सुरक्षाकर्मीयों की देखरेख मे चल रहे अस्पताल परिसर के आइसोलेशन वार्ड से युवक का लैपटॉप, कैमरा व कई किमती समान चोरी कर लिया गया है. वही सीएस द्वारा मामला दर्ज कर जांच करने की बात कही जा रही है.
अंतर्राष्ट्रीय मंच पर हो रही सारण जिला की बदनामी
पुरे विश्व मे एक ओर जहां भारत मे कोरोना वायरस को लेकर किए जा रहे प्रयासों से मान सम्मान बढ़ रहा है तो वही दुसरी तरफ महज कुछ पैसो के लिए की गई अमानवीय हरकत से बदनामी भी देखने को मिल रही है. पर्यावरण संरक्षण, शांति व अपनी कलात्मक फोटोग्राफी का संदेश लेकर हंगरी से दार्जिलिंग की यात्रा पर निकले युवक का समान सारण जिला के सदर अस्पताल छपरा के आइसोलेशन वार्ड से चोरी हो गया है. जबकि उसमे किसी प्रकार का कोई संक्रमण नही पाया गया वही वार्ड मे सुविधा के नाम पर भी युवक को उदासीनता का दंश झेलना पड़ा है.
सोशल मीडिया मे सहायता करने को लगाई गुहार
प्रशासनिक उदासीनता व सुविधा के नाम पर कुव्यवस्था का शिकार हुआ युवक लगातार सोशल मीडिया पर अपनी बात रखता रहा और मदद की गुहार लगाता रहा. कभी कुर्सी तो कभी खानपान की कमी व वार्ड में उबाउपन की लगातार पोस्ट करता रहा. परंतु सहायता की बात कौन करे यहां तो उसके कीमती व जरूरत की समान को ही चोरी कर लिया गया. उसने बताया कि मै थोड़े दिन में अपना फोटो , आर्टिकल सेल करूंगा , व अगर कोई उसका सामान ढूंढ कर लाता है उसको वो ईनाम देगा
सोशल मीडिया से मिली मदद
हम आपको यहां बता दें उसके दोस्त द्वारा छपरा में इंस्टाग्राम पेज हे छपरा कॉन्टैक्ट किया गया जहां उसके एडमिन सावन द्वारा भरोसा दिलाया गया कि जब तक वो छपरा में उसको सहायता किया जाएगा …. अब विक्टर खुश है क्यों कि सहयाता मिल रहा है नाखुश भी है क्युकी उसका अभी तक समान नहीं मिला ।
इसके पहले हंगरी से आए थे सेन्डोर अलेक्ज़ेंडर सोमा
सेन्डोर अलेक्ज़ेंडर सोमा (Alexander Csoma de Kőrös, १७८४-१८४२) एक हंगेरी यात्री तथा भाषाविद थे जिनको तिब्बती भाषा के ज्ञान को यूरोप में लाने वाला पहला व्यक्ति कहा जाता है। इन्होंने एक प्रसिद्ध कहावत के अनुसार हंगेरी भाषा के मूल को तिब्बती बोलियों में ढूँढने की कोशिश की थी जिसकी वजह से तिब्बत की यात्रा मध्य एशिया से होकर की थी। हाँलांकि वे इस सिद्धांत को साबित नहीं कर पाए पर तिब्बत शास्त्री के नाम पर उनको बाद में ख्याति मिली। दार्जलिंग में हुई थी मौत जिसका कारण मलेरिया बताया गया था .. (गूगल)